जानिए 1971 युद्ध में सैम मानेक्शॉ का साहस और इंदिरा गांधी को अटल बिहारी ने दुर्गा कहा
AI News Desk
1. विजयी युद्ध: 1971 में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ विजयी युद्ध लड़ा और पूरी तरह से उसे हराया। इस युद्ध में भारतीय सेना ने पूरी ताकत का प्रदर्शन किया और पाकिस्तान के कई क्षेत्रों को कब्ज़ा कर लिया। इस प्रदर्शन के कारण, इंदिरा गांधी को दुर्गा के रूप में संबोधित किया गया, जो महाशक्ति देवी को प्रतिष्ठित करती है।
1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया युद्ध द्वितीय भारत-पाकिस्तान युद्ध के रूप में जाना जाता है। इस युद्ध के समय, भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दुर्गा कहा जाने लगा। इसके पीछे कई कारण थे: पहली बार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने उनको दुर्गा कहा।
2. नेतृत्व और साहस: इंदिरा गांधी ने युद्ध के दौरान विभाजन की नेतृत्व की और बहुत ही साहसिक फैसले लिए। उन्होंने शक्ति का उपयोग करके पाकिस्तान के विमानबाज़ों को नष्ट किया और भारतीय सेना को युद्ध में अग्रणी बनाया। उनकी नेतृत्व के कारण, वे दुर्गा के रूप में प्रशंसा पाई।
3. गरीबी हटाओ की नीति:
इंदिरा गांधी ने युद्ध के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की “गरीबी हटाओ” नीति को अग्रसर किया। उन्होंने देश के गरीब लोगों के हित में कई सरकारी योजनाएं शुरू कीं और सामाजिक न्याय के पक्ष में कदम उठाए। इस क्रियान्वयन के कारण भी उन्हें दुर्गा कहा जाने लगा।
इन सभी कारणों के संग्रह में, इंदिरा गांधी को दुर्गा कहना पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान उनके बहादुराना नेतृत्व, बलिदान और शक्ति के प्रतीक के रूप में दर्शाता है।
भारत पाकिस्तान का युद्ध क्यों हुआ
1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध कई अवधारणाओं, तारीखों और घटनाओं के परिणामस्वरूप हुआ। यहां कुछ मुख्य कारण दिए जाते हैं:
1. बांग्लादेश के मुक्ति की मांग: दक्षिण पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के नाम से अलग करने की मांग उठी थी। पाकिस्तान की सरकार ने बांग्लादेश के अधिकांश लोगों की भाषा, संस्कृति और राजनीतिक मांगों को नजरअंदाज किया, जिससे उनमें उग्र आंदोलन और विद्रोह की भावना पैदा हुई। बांग्लादेश के स्वतंत्रता के लिए आवाज बुलंद करने वाले नेताओं की अन्यायपूर्ण व्यवहार के कारण, भारत ने इस मुक्ति आंदोलन का समर्थन करने का निर्णय लिया।
2. विस्थापित पाकिस्तानी बीमारी: 1970 में भारत और पाकिस्तान के बीच विस्थापित पाकिस्तानी नागरिकों की संख्या बढ़ने लगी, जो बांग्लादेश में आतंक के कारण अपने घरों को छोड़ने के लिए भारत आ रहे थे। भारतीय सरकार को इस बढ़ती हुई आपदा के प्रबंधन में कठिनाईयों का सामना करना पड़ा और उन्हें स्वीकार्य आवास, खाद्य, चिकित्सा सेवाएं और सुरक्षा प्रदान करनी पड़ी। इससे भारतीय सरकार ने पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ाने और उसे जवाब देने का निर्णय लिया।
3. भारतीय सेना के तैयारियों का महत्वाकांक्षी पाकिस्तान: भारतीय सेना ने वायुसेना, नौसेना और सेना में महत्त्वाकांक्षी तैयारियों की शुरुआत की। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री याह्या ख़ान ने भारतीय सेना की यह तैयारियां अप्रत्याशित मानी और उसने भारत पर प्रीम्प्टिव हमले की संभावना व्यक्त की। इसके परिणामस्वरूप, पाकिस्तान ने दिसंबर 1971 में भारत पर हमला शुरू कर दिया।
4. बांग्लादेश के समर्थन में अंतरराष्ट्रीय समर्थन: भारत ने बांग्लादेश के मुक्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त किया। अमेरिका, उससे पहले संघीय जर्मनी, रूस, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और अन्य देशों ने भी भारत को समर्थन दिया और पाकिस्तान को दबाव डाला। यह
अंतरराष्ट्रीय प्रभाव भारत के पक्ष में जारी युद्ध की वजह से भी बढ़ा।
इन सभी कारणों के संग्रह में, 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध का होना बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का परिणाम रहा, जिसने पाकिस्तान के विभाजन को पूर्ण कर दिया और बांग्लादेश को अलग देश के रूप में स्थापित किया।
फील्ड मार्शल सैम मानेक्शॉ का रहा जलवा
मार्शल सैम मानेक्शॉ (Field Marshal Sam Manekshaw) भारतीय सेना के एक प्रमुख सेनापति थे। उनका पूरा नाम सम मानेकशॉ फ्रांसिस मानेकशॉ था। वे भारतीय सेना के पहले पदाधिकारी फील्ड मार्शल थे और भारतीय इतिहास में मार्शल ग्रेड के सबसे ऊचे पद को धारण करने वाले अधिकारी थे।
सैम मानेकशॉ ने 1969 में भारतीय सेना के प्रमुख स्थानकालीन पदाधिकारी बनकर अपनी पहचान बनाई। उन्होंने 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध की नेतृत्व किया, जिसने बांग्लादेश की स्वतंत्रता को लाया। उन्हें उनके नेतृत्व के लिए “सेमपेड़” के नाम से भी जाना जाता है।
सैम मानेकशॉ को अपनी सेना व्यवस्था, योजनाओं और लड़ाई कौशल के लिए प्रसिद्धि मिली। उन्होंने भारतीय सेना को मजबूत और निर्भिक बनाने में योगदान दिया और एक अद्वितीय रूप से व्यक्तिगतिकृत सेना तंत्र का विकास किया।
सैम मानेकशॉ को 2008 में वायुसेना की सेवा से सन्यास लेने के बाद राष्ट्रपति द्वारा भारतीय सेना का फील्ड मार्शल मान्यता दी गई। उन्होंने 27 जून, 2008 को अपनी आखिरी सांस ली।