सर्वपल्ली की प्रसिद्ध पुस्तक “The Hindu View of Life” (हिंदू व्यू ऑफ लाइफ) की चर्चा क्यों नहीं होती
अरुण साथी/संपादकीय आलेख
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की प्रसिद्ध पुस्तक “The Hindu View of Life” (हिंदू व्यू ऑफ लाइफ)
पहली बार 1926 में प्रकाशित हुई थी। इसमें उन्होंने हिंदू धर्म के मूल स्वरूप, उसकी विशेषताओं और उसके दार्शनिक आधार को बहुत सरल और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया है।
मुख्य बातें इस प्रकार हैं:
1. हिंदू धर्म की व्यापकता
राधाकृष्णन बताते हैं कि हिंदू धर्म किसी एक पैगंबर या किताब पर आधारित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की एक लचीली और सहिष्णु परंपरा है।
इसमें अनेक मत, संप्रदाय और विचारधाराएँ रहते हुए भी सभी को स्वीकार करने की क्षमता है।
2. धर्म का वास्तविक अर्थ
धर्म केवल पूजा-पाठ या कर्मकांड तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानव के आचरण, नैतिकता और जीवन के संपूर्ण मार्गदर्शन का नाम है।
धर्म का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और सत्य की प्राप्ति है।
3. ईश्वर और आत्मा का संबंध
उन्होंने समझाया कि हिंदू विचारधारा के अनुसार ईश्वर सर्वव्यापी है और आत्मा उसी परमात्मा का अंश है।
मोक्ष मानव जीवन का परम लक्ष्य है, जिसे आत्मज्ञान और साधना से प्राप्त किया जा सकता है।
4. सहनशीलता और बहुलता
हिंदू धर्म विभिन्न मार्गों (भक्ति, ज्ञान, कर्म, योग) को मान्यता देता है और सभी को सच्चाई तक पहुँचने का साधन मानता है।
यह दूसरों के विश्वास और परंपरा का भी सम्मान करता है।
5. आधुनिक दृष्टि
राधाकृष्णन ने दिखाया कि हिंदू धर्म अंधविश्वास नहीं, बल्कि तर्क और अनुभव पर आधारित है।
इसमें आधुनिक विज्ञान और दर्शन से संवाद करने की क्षमता है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन : जीवन परिचय
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी नामक गाँव में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता चाहते थे कि वे पुजारी बनें, लेकिन राधाकृष्णन जी की रुचि शिक्षा और दर्शन में थी। उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की।
उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय शिक्षा और अध्यापन कार्य को समर्पित किया। वे मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज और मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक रहे। बाद में वे आंध्र विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने। उनकी गहन विद्वता और स्पष्ट विचारों के कारण उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति मिली।
राधाकृष्णन जी 1931 से 1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति और 1939 से 1948 तक बी.एच.यू. के कुलपति रहे। 1949 में वे सोवियत संघ में भारत के राजदूत नियुक्त किए गए। 1952 में वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति बने और 1962 से 1967 तक उन्होंने देश के राष्ट्रपति पद की गरिमा को बढ़ाया।
वे महान दार्शनिक, विचारक और शिक्षक थे। उनकी किताबें “हिंदू व्यू ऑफ लाइफ”, “इंडियन फिलॉसफी” और “ईस्टर्न रिलीजन एंड वेस्टर्न थॉट” आज भी दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
5 सितम्बर, उनकी जयंती को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका जीवन सादगी, विद्वता और राष्ट्र सेवा का अनोखा उदाहरण है। डॉ. राधाकृष्णन का निधन 17 अप्रैल 1975 को हुआ।
भारत में हर वर्ष 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह दिन देश के द्वितीय राष्ट्रपति और महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है। उन्होंने अपने जीवन को शिक्षा और विद्यार्थियों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था। जब वे राष्ट्रपति बने तो उनके विद्यार्थियों ने उनकी जयंती मनाने की इच्छा जताई, तब उन्होंने कहा कि यह दिन ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाए।
शिक्षक समाज का मार्गदर्शक और राष्ट्र निर्माण का प्रमुख स्तंभ होता है। शिक्षक न केवल पाठ्य पुस्तकों का ज्ञान कराते हैं, बल्कि जीवन जीने की कला, अनुशासन, नैतिकता और आदर्श मूल्यों की भी शिक्षा देते हैं। एक अच्छा शिक्षक अपने विद्यार्थियों के भविष्य को संवारता है और उनमें सपनों को साकार करने की ऊर्जा भरता है।
इस दिन विद्यालयों और महाविद्यालयों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जहाँ विद्यार्थी अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं। यह अवसर हमें याद दिलाता है कि हमारे जीवन में शिक्षक का स्थान माता-पिता के समान ही महत्वपूर्ण है।
अतः शिक्षक दिवस केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि शिक्षकों के योगदान को नमन करने और उन्हें आदर्श बनाने का प्रेरणादायी अवसर है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की प्रसिद्ध पुस्तक “The Hindu View of Life” (हिंदू व्यू ऑफ लाइफ) पहली बार 1926 में प्रकाशित हुई थी। इसमें उन्होंने हिंदू धर्म के मूल स्वरूप, उसकी विशेषताओं और उसके दार्शनिक आधार को बहुत सरल और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया है। मुख्य बातें इस प्रकार हैं:
1. हिंदू धर्म की व्यापकता
राधाकृष्णन बताते हैं कि हिंदू धर्म किसी एक पैगंबर या किताब पर आधारित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की एक लचीली और सहिष्णु परंपरा है।
इसमें अनेक मत, संप्रदाय और विचारधाराएँ रहते हुए भी सभी को स्वीकार करने की क्षमता है।
2. धर्म का वास्तविक अर्थ
धर्म केवल पूजा-पाठ या कर्मकांड तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानव के आचरण, नैतिकता और जीवन के संपूर्ण मार्गदर्शन का नाम है।
धर्म का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और सत्य की प्राप्ति है।
3. ईश्वर और आत्मा का संबंध
उन्होंने समझाया कि हिंदू विचारधारा के अनुसार ईश्वर सर्वव्यापी है और आत्मा उसी परमात्मा का अंश है।
मोक्ष मानव जीवन का परम लक्ष्य है, जिसे आत्मज्ञान और साधना से प्राप्त किया जा सकता है।
4. सहनशीलता और बहुलता
हिंदू धर्म विभिन्न मार्गों (भक्ति, ज्ञान, कर्म, योग) को मान्यता देता है और सभी को सच्चाई तक पहुँचने का साधन मानता है।
यह दूसरों के विश्वास और परंपरा का भी सम्मान करता है।
5. आधुनिक दृष्टि
राधाकृष्णन ने दिखाया कि हिंदू धर्म अंधविश्वास नहीं, बल्कि तर्क और अनुभव पर आधारित है।
इसमें आधुनिक विज्ञान और दर्शन से संवाद करने की क्षमता है।