- पवन कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
देश आज़ाद हुए आज 106 दिन हुए। 30 नवंबर, 1947 की बेहद प्यारी सी सुबह है। सर्दी के मारे कंपकपी सी है। जिम कॉर्बेट और उनकी बहन मार्गरेट (मैगी) बोरिया-बिस्तर समेत अपने घर गर्नी हाउस के बाहर खड़े हैं। सुविख्यात ब्रिटिश लेखक डफ हार्ट-डेविस अपनी किताब Hero of Kumaon में लिखते हैं-‘’माहौल ग़मज़दा है। नौकर-चाकर, पड़ोसी सभी उदास हैं। पेड़ पौधे उदास हैं। जंगल के जानवर भी उदास रहे होंगे। जिम कॉर्बेट और उनकी बहन सदा के लिए भारत छोड़कर केन्या में बसने जा रहे हैं ’’।
ये पहले लखनऊ जाएंगे, वहां से ट्रेन से मुंबई। फिर मुंबई से जहाज़ से मोम्बासा तक की यात्रा करेंगे।
मशहूर ब्रिटिश लेखक मार्टिन बूथ ने 1997 में लिखी अपनी पुस्तक ‘Carpet Sahib: A life of Jim Corbett’ में लिखा है—‘’अर्दली राम सिंह जिम कॉर्बेट और उनकी बहन मैगी को छोड़ने लखनऊ तक गया। जिम ने लखनऊ रेलवे स्टेशन पर राम सिंह को अकवार भर लिया। ट्रेन चल पड़ी, राम सिंह रो रहा था’’। मोम्बासा केन्या का समुद्रतटीय शहर है। हम अपनी आसानी के लिए इसे ‘केन्या का गोवा’ मान लेते हैं। यहां कभी पुर्तगालियों और अरबों का कब्ज़ा रहा है।
15 दिसंबर 1947, जिम कॉर्बेट अपनी बहन के साथ मोम्बासा बंदरगाह पर उतर गए हैं। अब ये अपने लिए घर की तलाश करेंगे। फ़िलहाल केन्या में इनका कोई स्थाई ठिकाना नहीं हैं।
केन्या में पहले से रह रहे अपने भतीजे टॉम कॉर्बेट की मदद ली लेकिन बात बनी नहीं। मकान और जगहें तो कई देखे पर कोई पसंद न आया। करते कराते, देखते दिखाते जिम कॉर्बेट पहुंच गए नेयरी।
नेयरी एक शहर है, नैरोबी से लगभग 140 किलोमीटर दूर, उत्तर, सोमालिया के रास्ते में, हाइवे से थोड़ा डिटूअर करना पड़ता है।
दो कमरे का मकान है, बाकी खुली पड़ी ज़मीन। जगह इन्हें पसंद आ गयी। ये अब ठिकाना बनेगा, भाई बहन के लिए। दोनो जब तक जिंदा रहे, यहीं रहे।
यहीं के जंगलों में कॉर्बेट ने एक खूबसूरत सा ट्री हाउस बनाया था।
जिम कॉर्बेट के दादा जोसेफ कॉर्बेट 1814 में आयरलैंड से आकर भारत में बस गए। यहां आकर अंग्रेज़ की फ़ौज में नौकरी की। जिम कॉर्बेट के चाचा थॉमस कॉर्बेट भी अंग्रेज़ों की फौज में थे।1857 के विद्रोहियों ने दिल्ली में उन्हें पकड़कर एक पेड़ से बांधा और जिंदा जला दिया।
क्रिस्टोफर कॉर्बेट, यानी जिम कॉर्बेट के पिता ने 1857 की लड़ाई में अंग्रेज़ों की फ़ौज में डॉक्टर के रूप में काम किया। इसके बाद वो नैनीताल जाकर बस गए। यहां उन्होंने पोस्टमास्टर की नौकरी की।
नैनीताल में ही जिम कॉर्बेट की पैदाइश हुई, 25 जुलाई 1875। जिम कॉर्बेट का असली नाम है एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट। लेकिन वो ताउम्र जिम कॉर्बेट के नाम से ही जाने गए।
जिम की जिंदगी में नैनीताल के अलावा दो और अहम पड़ाव हैं। बिहार का मोकामा शहर और केन्या का नेयरी। मोकामा में रेलवे में 20 साल तक नौकरी की और जीवन की अवसान बेला में केन्याई शहर नेय़री में जाकर बसे।
जिम कॉर्बेट के केन्या आने के लगभग 75 साल 6 महीने बाद मैं यहां आया हूं। चार दिनों से नैरोबी में हूं। सोचकर आया था, काम ख़त्म होने के बाद जिम कॉर्बेट की क़ब्र देखने नेयरी जाऊंगा।
आज 2 जूलाई है, 2023। सुबह के साढ़े सात बजे हैं। हवाएं तेज़ हैं। तापमान 15 डिग्री के पास है। एक पतले जैकेट भर सर्दी है। तेज़ हवा ने सर्दी की तासीर बढ़ा दी है।
टैक्सी मालिक फ्रांसिस का इंतज़ार कर रहा हूं। उसका फोन आ चुका है, देरी हो गई है, रास्ते में है। पिछले दो दिनों से केन्या की यात्रा में ये मेरे साथ है।
टैक्सी में सवार होकर हमें जाना है नैरोबी से 140 किलोमीटर दूर, उत्तर दिशा में सोमालिया की तरफ। शहर से बाहर निकलने में वक्त लगेगा।
हम फ़िलहाल वीआईपी इलाक़ों से गुज़र रहे हैं। नेता, मंत्री, पूर्व, वर्तमान सभी भरे हैं यहां। बाएं हाथ पर केन्या के मौजूदा राष्ट्रपति विलियम रूतो का घर है, किलों सा पहरा। रूतो 2022 सितंबर से पावर में हैं। इनपर चुनावों में बड़े पैमाने पर हेराफेरी कर सत्ता में आने का आरोप है।
फ्रांसिस कहता है–देखिए, ये प्रेसिडेंट का आवास है, बगल में पूर्व प्रेसिडेंट का घर है। करीने से कटे घास,आसपास सघन पेड़ पौधे, लोहे के विशाल दरवाजे, उसके ऊपर बिजली के तार लिपटे हुए। लाल टोपी और छींटदार ग्रीन बर्दी में सुरक्षा गार्ड्स मुस्तैद हैं। डरने की हद तक फीलिंग हो रही है।
यहां भारत की ही तरह राइट हैंड ड्राइव है। मैं खुद ड्राइव कर सकता था, इंटरनेशनल ड्राइविंग परमिट है मेरे पास। परंतु अनजाने रास्ते हैं लिहाज़ा कार किराए पर लेना ही मुनासिब समझा मैंने।
शहर में सड़कें संकरी हैं। ट्रेफ़िक है, कारें सरक सी रही हैं। शहर के अंदर फ्लाईओवर से लेकर नई सड़कों का निर्माण कार्य चल रहा है। इस वजह से भी जाम है।
हम जा तो रहे हैं जिम कॉर्बेट की मज़ार देखने, मन के अंदर कई सवाल हैं। मसलन जिम कॉर्बेट भारत छोड़कर केन्या क्यों आए ?
मार्टिन बूथ ने लिखा है- केन्या जाकर भी जिम कॉरबेट भारत को दिल से भुला न सके। जैसे भी संभव हुआ वो भारत से जुड़े रहे।
जिम की बहन मैगी ने अपने एक दोस्त को चिट्ठी में लिखकर बताया था-
‘’जिस सुबह हम हल्द्वानी हमेशा के लिए छोड़ने वाले थे, आख़िरी दफ़ा हमने घर के पास बहते हुए पानी की धारा को निहारा था। सुबह की पहली किरण के साथ उस पानी की छटा ही अलग थी। हम चलने लगे, घर के नौकर-चाकर भरी आंखों से बाहर आ कर खड़े हो गए, रोने लगे। हम पहाड़ की उतराई से नीचे आते रहे। आख़िरी बार हमने उस घर को पलट कर देखा था, जहां हम कभी दोबारा लौटकर आने वाले न थे’’।
ऐसा क्या हुआ होगा कि उनको नैनीताल और इस देश से विरक्ति हो गयी ? और फिर केन्या ही क्यों, कोई और देश क्यों नहीं ?
वैसे मुझे तो केन्या बहुत मज़ेदार लगा, अद्भुत मुल्क है। उस शाम एयरपोर्ट से निकलकर जब जावा कॉफी हाउस में बैठा तभी समझ में आ गया कि यहां के लोग सरल, सहज और मेहनतकश हैं।
ग़रीबी तो है लेकिन लालच, चोरी-पॉकेटमारी सरेआम नहीं दिख रही। लोग मीठा बोलते हैं। हर व्यक्ति तमीज़ और तहज़ीब से पेश आ रहा है। चेहरे पर मासूम मुस्कुराहट और ज़बान पर ‘जंबो’, और ‘साबा’ जैसे शब्द। जंबो का अर्थ है हेलो, साबा का मतलब है धन्यवाद।
कुल मिलाकर ये समझ में आया कि हम भारतीय अफ्रीका के बारे में ढेर सारे भ्रम पाले हुए हैं।
दरअसल जिम कॉर्बेट के भारत छोड़ने की वजहें समुच्चय में नहीं मिलतीं। टुकड़े-टुकड़े में मौजूद तर्कों को ज़रूर पिरो सकते हैं।
चेन्नई में रह रहे एक मित्र को लिखी जिम कॉर्बेट की चिट्ठी–डॉक्टरों ने राय दी कि जिम की बीमारी केन्या की आवोहवा में ही दूर हो सकती है। लेकिन इस तर्क को जिम विस्तार नहीं दे पाए। लिहाज़ा ये थ्योरी विश्वास से परे है।
एक अन्य थ्योरी मैगी के इंटरव्यू से निकली है-‘’भारत का बंटवारा और ख़ूनख़राबे से जिम दुखी थे और अपनी सुरक्षा को लेकर संशय में भी, इसलिए उन्होंने देश छोड़ दिया’’। इस थ्योरी पर भी आंख बंदकर यक़ीन नहीं कर सकते।
जो भी हो, सच ये है कि जिम ने बुझे दिल से भारत छोड़कर जाने का फ़ैसला किया था।
नेयरी के जंगल, तराई, पेड़ पौधे, पास के जीव जन्तु ये सब कॉर्बेट को पसंद आए होंगे। World Scouting Movement के संस्थापक बेडेन पॉवेल ने कहा था- Nearer to Nyeri, nearer to Bliss। ये बेडेन पॉवेल वही हैं जिनका मकान नेयरी में जिम ने ख़रीदा था।
उन्होंने केन्या का चुनाव इसलिए किया क्योंकि वो केन्या को समझते थे।
इसकी आवोहवा भारत से मिलती जुलती है।
अब तक हम नेयरी जाने के रास्ते में बड़ी दूर निकल आए हैं। थोड़ी दूर तक रेलवे की नैरोगेज पटरी हमारे साथ चल रही है। जगह जगह सड़कें खुदी हैं।
केन्या में इंफ्रा निर्माण के ढेर सारे ठेके चीनी कंपनियों के पास हैं। चीन अफ्रीका में अंदर तक घुसा हुआ है। मसलन, केन्या, ज़ांबिया, युगांडा, सेनेगल, घाना समेत कई अन्य देशों में।
सड़कें, फ्लाइओवर्स, बिजली परियोजनाएं और तेल कुओं के ठेकों पर चीनी कंपनियों का क़ब्ज़ा है। कुछ तेल के कुएं, दोयम दर्जे वाले, हमारी भारतीय कंपनियो के पास भी हैं।
अफ्रीकी देशों में घूमकर पता चलता है ‘थर्ड वर्ल्ड’ का क्या मतलब है। इसी महाद्वीप में आकर किफ़ायती ऐहसास होता है-डेमोक्रेसी क्या चीज़ है और कैसे हम हिंदुस्तानी इस मामले में दुनिया के कई देशों से बेहतर हैं।
यहां जनतंत्र तो है लेकिन भारत वाला नहीं। आवाज़ उठा तो सकते हैं, जेल जा सकते हैं। चुनाव तो हो रहे हैं, हेराफेरी भी हो रही है। कानून और व्यवस्था दिखती तो है, सरेआम पुलिस घूस भी ले रही है, नहीं देने पर जेल में ठेल सकती है।
हम भारतीयों के पास ये सुविधा है कि सत्तासीनों को ख़ूब खरी खोटी सुनाएं और हमारा बाल बांका न हो।
दरअसल केवल संविधान की किताब डेमोक्रेसी नहीं ला सकती। संस्कृति, संस्कार और आदतों में जब घुलने लगे तब प्रजातंत्र का मतलब है। प्रजातंत्र हमारे संस्कार, संस्कृति और आदतों में शुमार है।
खाली टीवी पर बैठकर गांधी को गरियाने से होगा ?
यहां केन्या में भी गांधी को चाहनेवाले हैं। गांधी की खासियत ही यही है। जहां जनतंत्र है वहां गांघी के चाहनेवाले होंगे ही, और जहां जनतंत्र नहीं है वहां इसके लिए लड़नेवाले गांधी को चाहेंगे।
बूंदाबांदी हो रही है। ये हाइवे नैरोबी को सोमालिया से जोड़ता है। इस सड़क से चिपके रहे तो सवाना घास का मैदान देख सकते हैं। इस सड़क को आगे चलकर भूमध्य रेखा काटती है।
फ्रांसिस ने कार की रफ्तार तेज़ कर दी है। सड़क के दोनों तरफ़ हरे-भरे खेत हैं, अभी केन्या में ख़रीफ़ फ़सलों की बुआई का मौसम है। धान और मक्के की खेती चहुं ओर है। मिट्टी का रंग लगभग ज़ाफरानी।
मेरी दायीं तरफ माउंट केन्या पर्वतमाला दिख रही है। इसको उछलकर पार करेंगे तो सोमालिया के रास्ते हिंद महासागर में गिर जाएंगे। अब बादल छंटने से खड़ी धूप हो गयी है, माउंट केन्या की चोटी पर जमी बर्फ़ से आंखें चौंधिया रही है।
केन्या को देख लगता है मानो 30 साल पहले का भारत है ये। सड़क किनारे सरकारी ज़मीन पर चाय की टपरी, ढाबे और न जाने कैसे कैसे कब्जे हैं। सड़क के दोनों तरफ अनानास की व्यापक पैमाने पर खेती हो रही है।
रास्ते में एक पुलिस बैरियर आ गया है। फ्रांसिस कहता है-आप ये मत बोलिएगा कि आप ग्राहक हैं, आप कहिए आप मेरे दोस्त हैं और कार किराए पर नहीं लिया।
पुलिस सघन जांच कर रही है। मेरी बारी आती है। पुलिसवाला कहता है-जम्बो !! कहां से आए हैं, कहां जाना है ? मैने कहा, जी, नेयरी। वो जाने देता है।
नेयरी जानेवाले रास्ते पहाड़ियों के बीच से होकर गुज़रते हैं। सड़क के दोनों ओर कॉफी के बाग हैं। चाय और कॉफी के प्लांटेशन दूर से देखने में एक जैसे लगते हैं लेकिन बहुत फ़र्क है दोनों में।
हम नेयरी शहर के पास आ गए हैं। आसपास लक्ज़री रिसॉर्ट्स की भरमार है। पुराने ज़माने के ब्रिटिश ट्युडर आर्किटेक्चर वाले कई मकान दिखाई दे रहे हैं।
यहां आकर उत्तराखंड में घूमने सा लग रहा है। ये हाईलैंड है, हाईलैंड कहते है उच्चभूमि वाले पठार को।
पूछते-पूछते हम सैंट पीटर्स चर्च पहुंच गए हैं। चर्च के गेट पर दरबान तैनात है। हम अंदर दाख़िल हो जाते हैं।
‘’यहां सिमेट्री के अंदर जिम कॉर्बेट की कब्र है क्या, हम दर्शन के लिए आए हैं’। मेरी गाइड ने चर्च के दरबान से पूछा। बात स्वाहिली भाषा में हुई।
उसने टिकट खिड़की की तरफ़ इशारा किय़ा, टिकट ले लीजिए। वो आगे-आगे चलने लगा। बारिश से यहां की मिट्टी नम हो गई है। पेड़ पौधे नहाए हुए हैं। चर्च के अंदर कुछ फिरंगी पर्यटक भी डोल रहे हैं।
दरबान एक कब्र के पास खड़ा हो जाता है। कहता है-‘’यही है। 19 अप्रैल 1955 से वो यहीं बसते हैं’’। संयोग, बगल में बेडेन पॉवेल की कब्र भी है। जिम की मज़ार पर आकर कुछ हासिल करने सा लग रहा है।
इस कब्रिस्तान की मुट्ठी भर मिट्टी उठाना चाहता हूं। दिल कर रहा, आधी मिट्टी नैनीताल की तराइयों में छिड़क दूं और बची हुई मिट्टी मोकामा घाट के आसपास हवा में लहरा दूं। क्या पता इसी मिट्टी से दोबारा कोई जिम कॉर्बेट पैदा ले, जन्म से नहीं तो कर्म से ही सही। जो जल, ज़मीन, जंगल और जानवरों की फ़िक्र करे।
लेखक बिहार के लखीसराय जिला के पतनेर गांव निवासी है। दिल्ली में जी बिजनस सहित कई बड़े चैनलों में काम कर चुकें है। अभी भारत भर में धूम धूम कर देश – विदेश की दबी खबरों को आवाज दे रहे हैं।