सूदखोरी की चपेट में बिखरा एक परिवार: धर्मेन्द्र की चुप्पी समाज के नाम एक सवाल

सूदखोरी की चपेट में बिखरा एक परिवार: धर्मेन्द्र की चुप्पी समाज के नाम एक सवाल

Arun Sathi

यह मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली घटना है। लिखते हुए हाथ कांप रहे हैं।

“मदर इंडिया” वाला साहूकार आज भी जिंदा है। तब उसने एक विवश मां से सूद के बदले देह मांगी थी, आज भी वैसा ही हो रहा है — कई गांवों में, कई शहरों में।

गांव में यह सूदखोरी का जाल मकड़जाल की तरह आदमी का खून चूस रहा है। आदमी तड़प कर मर जाता है, लेकिन किसी को फर्क नहीं पड़ता।

ऐसे ही एक मकड़जाल में फंसे एक पूरे परिवार ने जीवन लीला समाप्त कर ली। माता, पिता और चार बच्चों के परिवार में अब सिर्फ एक बच्चा बचा है।

धर्मेन्द्र, मूल रूप से शेखपुरा जिले के पुरनकामा गांव के निवासी थे। करीब दस साल पहले वे रोजी-रोटी के लिए दिल्ली गए और गांव से नाता टूट गया। बाद में नालंदा के पावापुरी में कपड़े का छोटा सा व्यापार शुरू किया। दो बेटियां, दो बेटे — पूरा परिवार संभालने की जिम्मेदारी। धीरे-धीरे कर्ज बढ़ता गया।

स्थानीय सूदखोरों ने कर्ज दिया। पर जब समय पर लौटाना संभव नहीं हुआ तो प्रताड़ना शुरू हुई। बेटियों के बारे में अपमानजनक बातें की गईं। अंततः पूरे परिवार ने जीवन लीला समाप्त जैसा कठोर कदम उठा लिया।

यह सिर्फ एक घटना नहीं, समाज की गहराई में फैली एक बीमारी है। सूदखोरी का यह मकड़जाल हर कोने में फैला है। यह समाज की सबसे बड़ी विसंगति बन चुका है।

सरकार गरीबी के आंकड़े दिखा कर सफलता का दावा करती है, मगर यह घटना उन दावों पर करारा तमाचा है।

जनधन योजना आम आदमी के लिए छलावा बन कर रह गई है। आम व्यापारी और गरीब को बैंक कर्ज नहीं देती, मिलती है सुविधा उन्हें जो दलालों के माध्यम से कमीशन चुकाते हैं।

गरीब आज भी इस सूदखोरी के मकड़जाल में फंसा है। अब तो इसमें माइक्रो फाइनेंस कंपनियां भी शामिल हो गई हैं — नए जमाने के साहूकार। कुछ के पास लाइसेंस है, कुछ बिना लाइसेंस के बसूली कर रहे हैं।

आज भी चिमनी पर काम करने जाने वाले मजदूर से ₹10 प्रति सैकड़ा के हिसाब से सूद वसूला जाता है। ये खून चूसने वाले समाज में प्रतिष्ठित भी माने जाते हैं।

मोबाइल आज ईएमआई पर मिल जाता है, लेकिन रोटी, दवा और किताब नहीं।

धर्मेन्द्र की घटना न तो पहली है, न ही आखिरी होगी।
हम थोड़ी देर संवेदना प्रकट करेंगे, बहस होगी, तर्क-वितर्क होगा। कुछ पक्ष में, कुछ विपक्ष में बोलेंगे — और बात खत्म हो जाएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *