बीड़ी विवाद पर क्यों गरमाई बहस, बिहार को लेकर कांग्रेस पर सवाल
पटना, संवाददाता।
बिहार को बीड़ी की लत से जोड़कर टिप्पणी करने पर प्रदेश में प्रतिक्रिया का दौर तेज हो गया है। केरल कांग्रेस द्वारा बिहार का नाम बीड़ी से जोड़कर व्यंग्य किए जाने के बाद सामाजिक और राजनीतिक हलकों में नाराज़गी दिखाई दे रही है। वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार ने इस टिप्पणी को तथ्यों के विरुद्ध बताते हुए इसे असंवेदनशील करार दिया है। उन्होंने कहा कि बिहार को लेकर बनी यह धारणा न केवल गलत है, बल्कि इससे बिहारवासियों की मेहनत और उपलब्धियों की उपेक्षा की जा रही है।
विवाद की शुरुआत
हाल में केरल कांग्रेस के कुछ नेताओं ने बिहार को बीड़ी की लत से जोड़ते हुए बयान दिया था। इसका उद्देश्य राजनीतिक व्यंग्य था, लेकिन इस बयान ने बिहार की छवि को लेकर विवाद खड़ा कर दिया। बयान सामने आने के बाद बिहार में इसे लेकर आलोचना शुरू हुई। कई लोगों ने इसे बिहारवासियों के प्रति पूर्वाग्रह और असम्मानजनक बताया।
तथ्यों से जवाब: बिहार में बीड़ी पीने वालों की संख्या बेहद कम
अरविंद कुमार ने ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (GATS-2) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि बिहार का बीड़ी सेवन अन्य राज्यों की तुलना में बहुत कम है। उन्होंने बताया कि बिहार में सिर्फ 4.2 प्रतिशत लोग बीड़ी का सेवन करते हैं, जबकि त्रिपुरा में 19.3 प्रतिशत, मेघालय में 17.2 प्रतिशत, उत्तराखंड में 15.7 प्रतिशत, हरियाणा में 15.5 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 14.8 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 14.4 प्रतिशत, राजस्थान में 11.4 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 11.3 प्रतिशत लोग बीड़ी पीते हैं।
उन्होंने कहा,
“जहाँ बीड़ी पीने वालों की संख्या तीन से पाँच गुना अधिक है, उन राज्यों की ओर ध्यान देना चाहिए। बिहार को निशाना बनाना बंद करें।”
बिहार की असली पहचान: शिक्षा, संघर्ष और प्रतिभा की भूमि
अरविंद कुमार ने बिहार की छवि को लेकर कहा कि यह राज्य बीड़ी की लत से नहीं, बल्कि शिक्षा, परिश्रम, संघर्ष और प्रतिभा से जाना जाता है। उन्होंने बताया कि बिहार के लाखों लोग देश के विभिन्न हिस्सों—दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई जैसे महानगरों में अपनी मेहनत से अर्थव्यवस्था को गति दे रहे हैं।
उन्होंने कहा,
“बिहारियों को बदनाम करने के बजाय उनकी उपलब्धियों को देखिए। यहाँ के लोग कठिन परिस्थितियों में भी शिक्षा हासिल कर आगे बढ़ते हैं। बिहार का नाम केवल बीड़ी से जोड़ना राज्य और उसकी संस्कृति का अपमान है।”
बिहार में विभिन्न सामाजिक संगठनों ने इसे लेकर विरोध दर्ज कराया है। युवा नेताओं और शिक्षाविदों ने कहा है कि बिहार की पहचान मेहनत, कौशल और ईमानदारी से है। साथ ही उन्होंने आग्रह किया है कि अन्य राज्यों में व्याप्त नशे की समस्याओं पर ध्यान दिया जाए और समाधान खोजा जाए।
कुछ नागरिकों ने कहा कि
> “बिहारी होना शर्म नहीं, गर्व की बात है। बिहार की मेहनत से देश चलता है। इस तरह की टिप्पणी से युवाओं का मनोबल गिरता है।”
पूर्वाग्रह और मीडिया की भूमिका
विशेषज्ञों का मानना है कि राज्यों की छवि अक्सर मीडिया और राजनीतिक बयानों से बनती है। जब बिना तथ्य परखे किसी राज्य को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत किया जाता है, तो इससे सामाजिक दूरी बढ़ती है। बिहार जैसे राज्य, जो लंबे समय से संघर्ष कर विकास की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, उन्हें गलत छवि से नुकसान उठाना पड़ता है।
विश्लेषकों का कहना है कि मीडिया को तथ्यों पर आधारित रिपोर्टिंग करनी चाहिए और राज्यों के योगदान को उचित रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।
बीड़ी विवाद ने बिहार की सामाजिक पहचान को लेकर एक व्यापक चर्चा छेड़ दी है। यह बहस केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राज्य के सम्मान, आत्मविश्वास और सकारात्मक छवि से जुड़ा मुद्दा है। विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों का मानना है कि बिहार को उसके संघर्ष और उपलब्धियों के आधार पर देखा जाना चाहिए, न कि पूर्वाग्रहों और सतही टिप्पणियों के आधार पर।