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नवरात्रि पर क्यों होता है कलश की स्थापना, जानिए माता दुर्गा के नौ रुप क्या है?
न्यूज डेस्क
नवरात्रि कलश स्थापना हिन्दू धर्म में नवरात्रि के त्योहार के दौरान अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है, और यह उपासकों द्वारा ध्यानपूर्वक किया जाता है। कलश का स्थापना कार्यक्रम नवरात्रि के प्रत्येक दिन को महत्वपूर्ण रूप से साजाकर मनाने के लिए किया जाता है।
कलश स्थापना का मुख्य उद्देश्य मां दुर्गा की आराधना करना होता है और मां दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कलश को पवित्र रूप से स्थापित किया जाता है। इसके अलावा, कलश को मां दुर्गा की उपस्थिति के रूप में माना जाता है और यह पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
कलश की स्थापना के दौरान, एक स्वच्छ बर्तन (कलश) में पानी डालकर उसके मुख पर नारियल रखा जाता है, जिसे विशेष रूप से सजाया जाता है। इसके बाद, कलश को धातु या लोहे के या आदर्श रूप से बने किसी कलश स्थान पर स्थित किया जाता है और उसके चारों ओर लक्ष्मी और सारे आवश्यक पूजा सामग्री का आयोजन किया जाता है।
कलश की स्थापना नवरात्रि के पूजा अनुष्ठान के दौरान एक अत्यधिक महत्वपूर्ण रीति है, जिससे उपासक मां दुर्गा की पूजा को ध्यानपूर्वक और आदरपूर्वक करते हैं और उनके जीवन में आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं।

मां दुर्गा के नौ रुप नवरात्रि के नौ दिनों के त्योहार के दौरान पूजे जाते हैं। इन नौ रुपों का वर्णन निम्नलिखित है:

1. शैलपुत्री:
शैलपुत्री दुर्गा का पहला रूप है, जो पर्वतराज हिमायल की बेटी के रूप में प्रस्तुत होती है। वह एक पादुका में श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और एक कमल के फूल को हाथ में लिए होती हैं।
2. ब्रह्मचारिणी:
दुर्गा के दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी होते हैं, जिन्होंने ब्रह्मा की तपस्या की थी। वह एक कमंडलु (कलश) और माला धारण करती हैं।
3. चंद्रघंटा:
चंद्रघंटा दुर्गा का तीसरा रूप है, जिन्होंने अपने मुख पर एक चंद्रमा की प्रतिकृति को धारण किया होता है, जिससे
उनका नाम प्राप्त हुआ। वह त्रिशूल और कमंडलु धारण करती हैं।
4. कूष्माण्डा:
कूष्माण्डा दुर्गा का चौथा रूप होता है, जिन्होंने अपने मुख से बाहर उगा हुआ शीतल फल खाती हैं। वह एक चाकू और और कमंडलु धारण करती हैं।
5. स्कंदमाता:
स्कंदमाता दुर्गा का पांचवा रूप है, जो स्कंद (कार्तिकेय) की मां हैं। वह अपने बच्चे स्कंद को गोद में बिठाकर धारण करती हैं।
6. कात्यायनी:
कात्यायनी दुर्गा का छठा रूप है, जो महिषासुर के विरुद्ध लड़ने के लिए उत्पन्न हुई थी। वह एक खडग (तलवार) और कमंडलु धारण करती हैं।
7. कालरात्रि:
कालरात्रि दुर्गा का सातवां रूप है, जो काल (अंधकार) के अग्रद्वार में प्रकट होती हैं। वह कालरात्रि के नाम से प्रसिद्ध हैं और एक खड़ग और शूल (त्रिशूल) को धारण करती हैं।
8. महागौरी:
महागौरी दुर्गा का आठवां रूप है, जो महिषासुर के प्रति अपनी बहादुरी के लिए प्रसिद्ध हैं। वह एक त्रिशूल और कमंडलु धारण करती हैं।
9. सिद्धिदात्री:
सिद्धिदात्री दुर्गा का नौवां और आख़री रूप है, जो सभी सिद्धियों की प्रदात्री हैं। वह कमंडलु, चंद्रमा, शंख, चक्र, गदा, पद्म, त्रिशूल और शूल धारण करती हैं। नौ दिनों के दौरान किया जाता है और भक्त इन रुपों का आदर करते हैं, मां दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं।
नवरात्रि कलश स्थापना हिन्दू धर्म में नवरात्रि के त्योहार के दौरान अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है, और यह उपासकों द्वारा ध्यानपूर्वक किया जाता है। कलश का स्थापना कार्यक्रम नवरात्रि के प्रत्येक दिन को महत्वपूर्ण रूप से साजाकर मनाने के लिए किया जाता है।
कलश स्थापना का मुख्य उद्देश्य मां दुर्गा की आराधना करना होता है और मां दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कलश को पवित्र रूप से स्थापित किया जाता है। इसके अलावा, कलश को मां दुर्गा की उपस्थिति के रूप में माना जाता है और यह पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
कलश की स्थापना के दौरान, एक स्वच्छ बर्तन (कलश) में पानी डालकर उसके मुख पर नारियल रखा जाता है, जिसे विशेष रूप से सजाया जाता है। इसके बाद, कलश को धातु या लोहे के या आदर्श रूप से बने किसी कलश स्थान पर स्थित किया जाता है और उसके चारों ओर लक्ष्मी और सारे आवश्यक पूजा सामग्री का आयोजन किया जाता है।
कलश की स्थापना नवरात्रि के पूजा अनुष्ठान के दौरान एक अत्यधिक महत्वपूर्ण रीति है, जिससे उपासक मां दुर्गा की पूजा को ध्यानपूर्वक और आदरपूर्वक करते हैं और उनके जीवन में आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं।